क्रिमिनल केस ट्रायल, जाने FIR से लेकर जजमेंट तक का प्रोसेस


क्रिमिनल केस ट्रायल दो प्रकार के होते है | एक वो जो की FIR के आधार पर होते है | दूसरा कंप्लेंट केस, जिसमे हम कोर्ट में धारा 156 (3) CRPC में FIR के लिए कोर्ट में जाते है |

यहाँ हम सिर्फ पुलिस द्वारा की गई FIR के ट्रायल के बारे में बात करेंगे | इसको हम तीन भागो में बाटेंगे पहला भाग चार्ज शीट फाइल होने से पहले का जिसमे पुलिस इन्वेस्टीगेशन होती है तथा दूसरा कोर्ट में केस ट्रायल का तथा तीसरा जजमेंट के बाद अपील का है | आइये इसे विस्तार से जाने :-

इंपोर्टेड हाइलाइट्स

. पुलिस द्वारा FIR करना

.  बैल करवाना

. चार्ज लगना

. गवाही

. जजमेंट

. अपील

. एप्लीकेशन जो केस में लगती है


पहला भाग (पुलिस इन्वेस्टीगेशन)

क्राइम की सुचना पुलिस को देना या उन्हें मिलना या शिकायत करना  

क्राइम की शुरुआत होने के बाद सबसे पहला काम होता है उसकी सुचना पुलिस को देना | जो सुचना देता है वो शिकायतकर्ता कहलाता है और जो क्राइम से प्रभावित होता है वो विक्टिम यानि पीड़ित कहलाता है | सुचना देने वाला व्यक्ति पीड़ित नही भी हो सकता है जैसे कोई व्यक्ति जिसने सिर्फ क्राइम होते हुए देखा हो लेकिन वो उसका हिस्सा नही हो, वो शिकायतकर्ता हो सकता है पीड़ित नही |

क्रिमिनल केस ट्रायल

क्या पुलिस भी शिकायतकर्ता हो सकती है ?

जी हां, पुलिस स्वय, किसी भी क्राइम की शिकायतकर्ता हो सकती है | जैसे की कोई पुलिस ऑफिसर गस्त पर है और वो कोई क्राइम होते हुये देखे तो वो स्वय भी शिकायतकर्ता हो सकता है | इसके अलावा पुलिस अपने किसी मुखबिर से कोई सुचना मिले या फिर कोई अपनी पहचान बताये बिना पुलिस को  सुचना दे, तो उस क्राइम में भी वो पुलिस ऑफिसर ही शिकायतकर्ता होगा |


FIR दर्ज करना धारा 154 Cr.P.C. में पुलिस इन्वेस्टीगेशन करना

जब भी, पुलिस को क्राइम की सुचना मिलती है उसका पहला काम होता है धारा 154 Cr.P.C. में  FIR रजिस्टर्ड करना | अगर समय नही है और मौके पर पहुचना जरूरी है तो पुलिस पहले मौके पर जाकर हालात काबू में करेगी | फिर FIR रजिस्टर्ड करेगी |


मेडिकल करवाना पीड़ित / शिकायतकर्ता या आरोपी का

पुलिस FIR करने से पहले या फिर FIR करने के बाद जैसा भी उचित समझे वैसे, सबसे पहले शिकायतकर्ता या आरोपी दोनों पार्टियों को मेडिकल के लिए पास के सरकारी या प्राइवेट हॉस्पिटल में लेकर जाएगी |

अरेस्ट करना, पुलिस बल या जमानत

सबसे पहले पुलिस आरोपी को अरेस्ट करके उसके किसी भी परिचित को इतला करेगी अगर जरूरी हुआ तो आरोपी के दिए गये पते पर किसी पुलिस ऑफिसियल द्वारा जाकर लिखित में इतला की जाएगी


अगर पुलिस को लगता है की जिस धारा में केस बनता है वो धारा जमानतीय है तो वो आरोपी को पुलिस स्टेशन में ही जमानत पर छोड़ेंगी | इसके लिए वे किसी जमानती की मांग भी आरोपी से कर सकती है |


अगर अपराध गैर जमानतीय धाराओं में है तो पुलिस आरोपी को अरेस्ट करने के 24 घंटे के अंदर किसी भी मजिस्ट्रेट के सामने पेश करके, आरोपी को जेल भेज देगी | फिर आरोपी को जमानत देगी की पॉवर कोर्ट की होगी |


आरोपी द्वारा जमानत या अग्रिम जमानत लेना

अगर कोई आरोपी घटना स्थल से अरेस्ट नही हुआ है या फिर भाग गया है वो अपनी अग्रिम जमानत भी कोर्ट से ले सकता है या फिर पुलिस या कोर्ट के सामने समर्पण करके भी जमानत ले सकता है | शिकायतकर्ता चाहे तो उस बैल के खिलाफ उपर की कोर्ट में बैल कैंसिलेशन फाइल कर सकती है |


पुलिस द्वारा केस में इन्वेस्टीगेशन करना सबूत इकठ्ठा करना

FIR रजिस्टर्ड होने के बाद पुलिस का काम होता है की वो केस की निष्पक्ष जाँच करे और रिपोर्ट फाइल करे केस का इंचार्ज I. O. यानि की इन्वेस्टीगेशन ऑफिसर होता है | वही केस की जाँच करता है | घटना की जगह का नक्शा बनाता है, जरुरी कागजात व्यक्तियों या डिपार्टमेंट से लेता है, गवाहों के धारा 161 CRPC में बयान दर्ज करता है इत्यादि |


डिस्चार्ज शीट या चार्ज शीट फाइल करना

अगर I. O. अपनी इन्वेस्टीगेशन में ये पाता है की शिकायतकर्ता की शिकायत झूठी है और आरोपी निर्दोष है तो वो डिस्चार्ज समरी या FR कोर्ट के सामने फाइल करके केस को खत्म कर सकता है| (ऐसे में कोर्ट चाहे तो केस को शिकायतकर्ता या केस में किसी पीडित की प्रोटेस्ट पेटिसन पर चला सकती है)


अगर, ऐसा नही है और आरोपी के खिलाफ सबूत है तो आरोपी के खिलाफ चार्ज शीट कोर्ट में फाइल कर दी जाती है | फिर कोर्ट में क्रिमिनल केस ट्रायल चलता है |


किसी भी क्रिमिनल केस में चार्ज शीट फाइल करने की समय सीमा 60 दिन या 90 दिन होती है | जो की केस की धाराओं पर निर्भर करती है | जो केस बड़ी धाराओ में रजिस्टर्ड होते है जैसे की मर्डर / रेप/ जान से मरने की कोशिश इत्यादि में 90 दिनों में पुलिस को चार्ज शीट फाइल करनी होती है | बाकी धाराओ में 60 दिन में चार्ज शीट फाइल करनी होती है | लेकिन ये नियम तभी लागु होता है जब आरोपी जेल में हो और उसकी जमानत नही हुई हो | अगर आरोपी बेल पर है तो पुलिस चार्ज शीट फाइल करने में ज्यादा समय भी लगा सकती है | ये समय कई महीनो और सालो का भी हो सकता है |


चार्ज शीट में ये चीज़े शामिल होती है

क्रिमिनल केस ट्रायल की चार्ज शीट में ये चीजे शामिल होती है :- (1) दोनों पार्टियों शिकायतकर्ता और आरोपी का नाम, (2) केस की सूचना की प्रकृति की केस की सुचना कैसे मिली (3) शिकायतकर्ता के शिकायत की प्रति (4) शिकायतकर्ता की मेडिकल रिपोर्ट (5) आरोपी की गिरफ्तारी या बैल से सम्बन्धित पेपर (6) सभी गवाहों के ब्यान “लड़की के 164 CRPC के बयान” (7) अन्य कोई केस से सम्बन्धित पेपर इत्यादि

चलिए दोस्तो मिलते है आपसे अगले भाग में

भाग -2 पढ़ने के  लिए यहां क्लिक करें

भाग -3 पढ़ने के  लिए यहां क्लिक करें

 

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