तीसरा भाग (अपील)
सजा के बाद बेल
अगर दोषी को सजा 3 साल या इससे कम की सुनाई गई है तो आपको उसी कोर्ट से बेल मिल जाती है वरना उसको जेल में जाना होता है | फिर वो उपर की कोर्ट में अपनी बेल अप्लाई करता है |
अगर बेल मजिस्ट्रेट की कोर्ट से मिली है तो आपके पास अपील के लिए 30 दिन का समय है | अगर सेशन कोर्ट आपकी ट्रायल कोर्ट रही है तो आपका अपील का समय 45 से 60 दिन का होता है ये केस के अनुसार निर्भर करता है |
अपील पेटिसन
अगर आपको ट्रायल कोर्ट से सजा मिली है तो आप अपनी उपर की कोर्ट जो की सेशन / हाई कोर्ट या फिर सुप्रीम कोर्ट जो भी हो वहा अपील कर सकते है |
शिकायत करता को लगे की आरोपी बरी हो गया है या फिर उसे सजा कम मिली है तो वो भी उपर की कोर्ट में उसे ज्यादा सजा दिलाने की अपील कर सकता है
रिव्यु पेटिसन
रिव्यु पेटिसन का मतलब होता है अपने ही आदेश को दुबारा से सुनना | जब कोर्ट आपके किसी आदेश को सुन कर अपना फेसला सुना देती है तो आप दुबारा से उसे अपने आदेश को सुनने के लिए रिव्यु पेटिसन फ़ाइल करते है | ऐसा आप सेशन कोर्ट, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में कर सकते है | आप चाहे तो हाई कोर्ट में ज्यादा जजों की बैंचो के सामने भी अपने केस को लगवा सकते है |
दया याचिका Mercy petition
अगर दोषी व्यक्ति की हाई कोर्ट और इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में अपील ख़ारिज होने के बाद, वो दोषी 10 से कम की सजा के केस में अपने राज्य के राज्यपाल और इससे ज्यादा है तो सीधे माननीय राष्ट्रपति जी के सामने दया याचिका दाखिल कर सकता है। माननीय राष्ट्रपति जी संविधान के अनुच्छेद-72 के तहत दया याचिका पर विचार करने के बाद फैसला देते हैं। अगर दोषी की दया याचिका भी खारिज हो जाए तो उसे सजा भुगतनी ही पड़ती है |
एप्लीकेशन/आवेदन जो केस में किये जाते है :-
exemption एप्लीकेशन (पेशी में छुट) : –
अगर आरोपी जिसका केस कोर्ट में चल रहा हो वो किसी कारण से उस दिन नहीं आ सकता है वो धारा 205 CRPC में आवेदन करके उस दिन नहीं आने कारण दे कर कोर्ट में जाने से बच सकता है | ये आवेदन उसके किसी परिचित या फिर वकील साहब दुवारा दिया जाता है |
permanent exemption एप्लीकेशन (प्रत्येक पेशी में छुट) :-
आरोपी अपनी कोई मजबूरी जैसे की कोई बीमारी, बुडापा या कोर्ट से उसके घर की दुरी या अन्य सुरक्षा के कारणों का हवाला दे कर वो कोर्ट से परमानंट (permanent exemption) ले सकता है | इसमें उसे क्रिमिनल केस ट्रायल में आने पर छुट मिल जाती है | आरोपी को सिर्फ चार्ज फ्रेम करने/ S.A. के लिए और अंत में जजमेंट के समय ही आना होता है |
क्षतिपूर्ति :-
अगर पीडिता या शिकायतकर्ता केस जीती है तो वो कोर्ट से क्षतिपूर्ति पाने की हकदार है | अगर दोषी पक्ष केस जीता है तो वो स्टेट/राज्य से या फिर शिकायतकर्ता से क्षतिपूर्ति या मुआवजा पाने का हकदार है |
इसके अलावा दोषी पक्ष शिकायतकर्ता पर मानहानि का केस भी करके मुआवजा ले सकता है
(वैसे ट्रायल के बारे लिखने को तो बहुत है, एक पूरी बुक लिखी जा सकती है | लेकिन वो सब यहा लिखना सम्भव नही है | इसलिए मेंने सिर्फ कुछ सामान्य तौर पर जरूरी बाते यहा लिखी है |)
चलिए दोस्तो मिलते है उम्मीद करते है आपको ये जानकरी पसंद आई हो फिर मिलते है किसी और लेख में
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