दूसरा भाग (क्रिमिनल केस ट्रायल)

चार्ज शीट फाइल होने बाद आरोपी पर क्रिमिनल केस ट्रायल शुरू हो जाता है | सबसे पहले आरोपी को समन द्वारा बुला कर चार्ज शीट की कॉपी दी जाती है | अगर कॉपी में कोई कमी है तो वकील साहब धारा 207 CRPC में कोर्ट के सामने आवेदन करके वे पेपर कोर्ट से लेते है या फिर चार्ज शीट की कमियों को कोर्ट में बता कर लेखाबद करवाते है | ताकि वे बाते कल को केस के फाइनल आर्गुमेंट के समय आरोपी के खिलाफ नही जाए |


क्रिमिनल केस ट्रायल, जाने FIR से लेकर जजमेंट तक का प्रोसेस part 2


चार्ज फ्रेम

चार्ज शीट के पेपर की फोरमल्टी पूरी होने के बाद चार्ज पर बहस होती है | चार्ज का मतलब होता है आरोपी पर धाराए लगाना की किस धारा में उस पर केस बनता है और किन धाराओं में उस पर केस चलना चाहिए | इसे “चार्ज फ्रेम” करना कहा जाता है |


अगर कोर्ट को लगे की आरोपी पर केस/चार्ज फ्रेम करना बनता है | लेकिन धाराये सही नही है तो वो इन धाराओं को बदल कर नई धाराओं में भी चार्ज लगा सकती है |


चार्ज पर बहस के बाद आरोपियों को या तो आरोप मुक्त किया जाता है या फिर चार्ज फ्रेम किया जाता है। चार्ज फ्रेम किए जाने के बाद अदालत आरोपी से पूछती है कि, क्या उसे अपना गुनाह कबूल है | अगर वह अपना गुनाह कबूल कर लेता है तो उसे उसी वक्त सजा सुना दी जाती है और क्रिमिनल केस ट्रायल यही पर समाप्त हो जाता है |


लेकिन आमतौर पर आरोपी द्वारा गुनाह कबूल नहीं किया जाता और अदालत में आरोपी कहता है कि वह क्रिमिनल केस ट्रायल फेस करेगा और फिर उस केस ट्रायल शुरू हो जाता है।


 गवाही PE (प्रोसिकुशन एविडेंस)

क्रिमिनल केस ट्रायल की इस स्टेज पर चार्ज शीट में दी गई गवाहों की लिस्ट के अनुसार गवाहों की गवाही होती है  सबसे पहले विक्टिम / शिकायतकर्ता की गवाही होती है | इसके बाद कोई पब्लिक विटनेस यानी की घटना के वक्त कोई चश्मदीद गवाह हो तो उसकी गवाही इसके बाद पुलिस और डॉक्टर या फोरेंकिस लैब वालो की जो भी केस के अनुसार दिए हो | वैसे सबसे लास्ट में I.O. यानि की इन्वेस्टीगेशन ऑफिसर की गवाही होती है | इस में आरोपी पक्ष का वकील अपने क्लाइंट को बचने के लिए गवाहों की स्टेटमेंट के बाद उनसे जिरह / Cross करता है | इसे क्रॉस एक्सामिन cross examination करना भी कहा जाता है |


(क्रिमिनल केस ट्रायल का ये सबसे अहम भाग होता है इसी में आपके वकील साहब की काबलियत देखि जाती है की वे केस को किस प्रकार अपने अनुसार मोडते है) |


इसमें सबसे पहले सरकारी वकील, गवाह के ब्यान लिखवाता है फिर आरोपी पक्ष के वकील साहब उसका क्रॉस करते है | अगर कोई सरकारी गवाह अपने ब्यान से मुकर जाए या होस्टाइल हो जाए तो सरकारी वकील खुद उससे जिरह / क्रॉस करते है, ये साबित करने के लिए की वो जानबूझ कर झूठ बोल रहा है  और आरोपी को फायदा पहुचाना चाहता है |


अगर पीड़ित कोई लड़की है और उसकी किसी महिला जज के सामने 164 CRPC की स्टेटमेंट भी हुई है तो वो जज साहिबा भी गवाही के लिए बुलाई जाती है उनका नाम भी गवाहों की लिस्ट में होता है | अगर महिला अपने ये बयाँन होने स्वीकार कर लेती है तो उन जज साहिबा को कोई नही बुलाता है उन्हें ड्राप करवा दिया जाता है | अगर पीड़ित महिला अपने 164 CRPC बयानों को नही मानती है या फिर उनमे कुछ बात, उसकी बिना कहे लिखा हुआ होना कहती है तो, उन जज साहिबा को गवाह के तौर पर बुलाना होता है |


गवाही के दौरान आरोपी का बरी / डिस्चार्ज होना

क्रिमिनल केस ट्रायल में गवाही की स्टेज के दौरान शिकायतकर्ता या किसी गवाह की गवाही से ये लगे की आरोपी को गलत फसाया गया है तो कोर्ट उस को उस व्यक्ति की गवाही के बाद बरी कर देती है | जैसे की शिकायत पक्ष कह दे की ये वो व्यक्ति नही है जिसने की कानून तोडा है | या कोई मेडिकल रिपोर्ट या फिर कोई सरकारी गवाह उसके पक्ष में गवाही दे जाए तो उस गवाही के बाद कोर्ट को लगे की केस को आगे चलाना बेकार है सिर्फ कोर्ट का समय ही खराब होगा तो, ऐसे में कोर्ट ,केस को उसी स्टेज पर जजमेंट देकर ख़त्म कर देती है |


स्टेटमेंट ऑफ़ accused (SA)

शिकायत पक्ष की गवाही होने के बाद आरोपी व्यक्ति की स्टेटमेंट होती है इसमें कोर्ट उससे केस से सम्बन्धित सवाल करती है की ये अपराध उसने किया है | इसमें व्यक्ति अगर अपनी गलती नही मानता है और ट्रायल चलाने के लिए कहता है तो आगे केस चलता है | अगर गलती मान लेता है तो कोर्ट इसी स्टेज पर अपनी जजमेंट दे देती है जिसमे उसे सजा सुनाई जाती है | लेकिन इस स्टेज पर कोर्ट कम से कम सजा देने की कोशिश करती है |


बचाव / डिफेन्स evidence

क्रिमिनल केस ट्रायल की इस स्टेज में आरोपी पक्ष अपने बचाव के लिए अपनी गवाही करवा सकता है या फिर किसी और व्यक्ति की गवाही भी | इसमें वो कोई सबूत अपने पक्ष में हो तो उसको पेश करता है या फिर किसी व्यक्ति या संस्था सरकारी या गैर सरकारी संस्था को कोर्ट द्वारा बुलवा कर पेश करवा कर अपना पक्ष रखता है | इसके बाद केस फाइनल आर्गुमेंट में चला जाता है |


फाइनल आर्गुमेंट/ अंतिम बहस

आरोपी पक्ष की गवाही के बाद केस बहस में लग जाता है अगर बहस में कुछ पॉइंट बिच में आते है जिसमे की समय लगता है या फिर किसी जजमेंट पर बहस होती है तो तारीखे पड़ती है वरना पहली बहस के बाद केस अंतिम बहस में लगता है | वो इसलिए की अगर केस में कुछ छुट गया है तो वो अगली बहस में पूरा किया जा सके |


जजमेंट

बहस पूरी होने के बाद केस में जजमेंट दी जाती है | अगर आरोपी को बरी कर दिया है तो ठीक है | अगर उसे सजा सुनाई गई है तो सजा के कारण दिये जाते है लेकिन सजा कितनी है ये नहीं सुनाया जाता है उसके लिए अलग से तारीख दी जाती है जिसमे उसे सजा सुनाई जाती है | उसकी अपनी अलग कॉपी होती है |


अगर किसी आरोपी को दोषी करार देते हुए फांसी की सजा सुनाई जाती है, तो वो ट्रायल कोर्ट उसके कंफर्मेशन के लिए फैसले की कॉपी हाई कोर्ट भेजती है। जब हाई कोर्ट में फांसी के मामले में कंफर्मेशन के लिए जो रेफरेंस ट्रायल कोर्ट से आता है तो उसी दौरान दोषी व्यक्ति हाई कोर्ट में अपील दाखिल कर सकता है की उसे फांसी नही दी जाए इसमें वो केस में अपने मजबूत पहलुओ, अपनी समाजिक, पारिवारिक और आर्थिक मजबूरियों का हवाला देता है | फिर भी अगर हाई कोर्ट उसकी फांसी की सजा को कंफर्म करदे तो वो इस आदेश की अपील में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता हैं।


अगर सुप्रीम कोर्ट से भी अर्जी खारिज हो जाए तो ट्रायल कोर्ट उसे फांसी की सजा सुना देती है |


अगर दोषी की सजा उम्रकैद या इससे कम की होती है  तो फिर ट्रायल कोर्ट को हाई कोर्ट से कंफर्मेशन की जरूरत नहीं होती ।


संटेंस ऑफ़ जजमेंट

इस की तारीख पर दोषी को सजा सुनाई जाती है | वो सजा जेल जाने, फाइन भरने या फिर सिर्फ कोर्ट में सारा दिन खड़े रहने या अन्य किसी और प्रकार के काम करने की भी हो सकती है |

चलिए दोस्तो मिलते है आपसे अगले भाग में

भाग -1 पढ़ने के  लिए यहां क्लिक करें

भाग -3 पढ़ने के  लिए यहां क्लिक करें

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