घरेलू हिंसा का अर्थ क्या है?

दोस्तो जब भी कभी किसी पर मुकदमा होता है उसे तमाम तकलीफों का सामना करना पड़ता है , कुछ केस में तो पत्दानी की झूठी शिकायत की वजह से पति की नौकरी तक चली जाती है और पति के लाए अनावश्यक परेशानी पैदा की जाती है |  पत्नी के खिलाफ केस दर्ज कराने के लिए पति के पास घरेलू हिंसा जैसा कानून नहीं पर माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा इस संबंध मे प्रावधान किए गए है परन्तु अभी उनका चलन नहीं है 

कुछ ऐसे भी केस देखने को मिलते है जहां पत्नि के साथ घरेलू हिंसा होती हैं । ऐसे में आज के दौर में भी देश में नारी सुरक्षा एक चुनौती बनकर रह गयी है सरकार के वो बड़े बड़े दावे इन दुष्ट दानवो के आगे फुस्स होते नजर आ रहे हैं. तो चलिए घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 को विस्तार से समझते है जिसके कि केस कैसे करना है और झूठे केस में बचाव कैसे करना है, दोनो सही से समझ आ सके 

 

घरेलू हिंसा क्या है?

घरेलू हिंसा वो दुर्व्यवहार, अपमान या हिंसा है जो किसी महिला के साथ घर की चार-दीवारी के भीतर हो. हिंसा परिवार द्वारा की जा सकती है और यह शारीरिक, मानसिक, मौखिक, भावनात्मक, यौन या आर्थिक रूप में हो सकती है20.


घरेलू हिंसा की शिकायत किसके खिलाफ दर्ज की जा सकती है?


घरेलू हिंसा की शिकायत आम तौर पर "परिवार" के खिलाफ दर्ज की जाती है, यानी उस व्यक्ति के खिलाफ जिसका पीड़ित व्यक्ति से कोई घरेलू संबंध हो. पीड़िता का इस व्यक्ति से खून का संबंध (जैसे माता-पिता या भाई-बहन), विवाह का संबंध (जैसे पति, ससुराल), अपने साथी से (लिव-इन रिलेशनशिप), या दूर की रिश्तेदारी का कोई संबंध हो सकता है. हिंसा या दुर्व्यवहार करने वाला पुरुष या महिला हो सकता है.


पीड़ित व्यक्ति घरेलू हिंसा की शिकायत कैसे दर्ज कर सकता है?


पीड़ित या पीड़ित की ओर से कोई व्यक्ति शिकायत दर्ज करा सकता है. घरेलू हिंसा का शिकार व्यक्ति नीचे दिए गए विकल्पों में कोई चुन सकता है.


  • पुलिस थाना- पुलिस एक एफ़आईआर या घरेलू घटना की रिपोर्ट (DIR) दर्ज करेगी या पीड़ित को क्षेत्र में मौजूद प्रोटेक्शन ऑफ़िसर के पास जाने का निर्देश देगी.
  • प्रोटेक्शन ऑफ़िसर- एक सुरक्षा अधिकारी है जो ज़िले में होने वाले घरेलू हिंसा के मामलों के लिए, संपर्क का पहला सूत्र है. प्रोटेक्शन ऑफ़िसर पीड़ित को डीआईआर दर्ज करने और अदालत में मामला दर्ज करने में मदद करेगा21
  • राष्ट्रीय महिला आयोग- राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) को घरेलू हिंसा, दहेज उत्पीड़न या यौन उत्पीड़न से जुड़ी शिकायतों की जांच करने का अधिकार है. राष्ट्रीय महिला आयोग का काम स्थानीय पुलिस की अगुवाई में होने वाली जांच पर निगरानी रखना और उसमें तेजी लाना है. आयोग उन मामलों में पीड़ित को सलाह देने का काम भी करता है जहां पीड़ित और उसके साथ दुर्व्यवहार करने वाला अदालत जाए बिना अपने विवाद को सुलझाने का मन रखते हैं. इसके अलावा आयोग का काम जांच समिति का गठन, स्पॉट पूछताछ, गवाहों और चश्मदीदों से पूछताछ, सबूत इकट्ठा करना और अपनी जांच के आधार पर शिकायत के बारे में रिपोर्ट तैयार करना है22.


प्रोटेक्शन ऑफ़िसर कौन है?


प्रोटेक्शन ऑफ़िसर, घरेलू हिंसा पीड़ित व्यक्ति और व्यवस्था यानी पुलिस, वकील और अदालतों के बीच की महत्वपूर्ण कड़ी हैं. उनकी भूमिका शिकायत दर्ज करने, वकीलों से जुड़ने और अदालत में मामला दर्ज करने की प्रक्रिया  में पीड़ितों की मदद करना है. जरूरत पड़ने पर वे पीड़ित की  मेडिकल जांच करवाने में भी मदद करते हैं. ये अधिकारी प्रत्येक ज़िले में राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किए जाते हैं. अधिकतर, प्रोटेक्शन ऑफ़िसर महिलाएं ही होती हैं. 


घरेलू घटना रिपोर्ट क्या है?


घरेलू घटना की रिपोर्ट (DIR) घरेलू हिंसा की शिकायत मिलने पर बनाई जाने वाली रिपोर्ट है. रिपोर्ट प्रोटेक्शन ऑफ़िसर या ऐसी किसी एनजीओ द्वारा बनाई जाती है जो महिलाओं की मदद करती हैं. इसमें शामिल होता है:

  1. पीड़ित का नाम:
  2. उम्र:
  3. आरोपियों के बारे में जानकारी(s):
  4. हिंसा की घटना (या घटनाओं) का ब्यौरा:  


पीड़ित के क्या अधिकार हैं?


पुलिस अधिकारी, प्रोटेक्शन ऑफ़िसर, एनजीओ या मजिस्ट्रेट, जिनके पास शिकायत दर्ज करवाई गई है, प्रभावित महिला को उन सभी राहतों के बारे में सूचित करते हैं जिनका वह लाभ उठा सकती है और जो कानून के तहत उसके अधिकार हैं23. पीड़ित के पास प्रोटेक्शन ऑर्डर (संरक्षण आदेश), कस्टडी का आदेश, आर्थिक सहायता, सुरक्षित निवास में रहने का अधिकार और मेडिकल सुविधाओं तक पहुंच का अधिकार है. सुनवाई के शुरुआती चरण में अदालत इन चीज़ों से संबंधित आदेश दे सकती है.   


राहत पाने के लिए पीड़ित व्यक्ति कोर्ट में कैसे अपील कर सकता है?


पीड़ित के लिए वकील की सहायता से, मजिस्ट्रेट के सामने एप्लीकेशन दायर करना ज़रूरी है. इसके ज़रिए पीड़ित को अदालत को बताना होगा कि वो अदालत से किस तरह की राहत प्राप्त करना चाहते हैं, जैसे सुरक्षा या संरक्षण संबंधी आदेश, निवास से जुड़ा आदेश, आर्थिक सहायता का निर्देश, मुआवज़े या हर्जाने का आदेश और अंतरिम आदेश. पीड़ित व्यक्ति वकील की सेवाएं ले सकते हैं या अपने प्रोटेक्शन ऑफ़िसर से मदद ले सकते हैं, या किसी एनजीओ से कानूनी सहायता के लिए कह सकते हैं.


अदालत किस तरह के संरक्षण आदेश पारित कर सकती है?


आमतौर पर मजिस्ट्रेट जिस तरह के संरक्षण आदेश पारित कर सकते हैं उनमें शामिल हैं:

  1. घरेलू हिंसा दोहराई न जाए इसे लेकर निषेधाज्ञा का आदेश. यह आदेश शिकायतकर्ता की अपील में लिखी बातों के आधार पर पारित किया जाता है.
  2. आरोपी को पीड़िता के स्कूल/कॉलेज या दफ्तर जाने से रोकने संबंधी आदेश.
  3. आरोपी द्वारा पीड़िता को दफ्तर जाने से रोकने पर आरोपी के खिलाफ आदेश.
  4. आरोपी को स्कूल, कॉलेज या उस जगह पर जाने से रोकने संबंधी आदेश जहां पीड़ित के बच्चे जाते हैं.  
  5. आरोपी अगर पीड़ित को स्कूल या कॉलेज जाने से रोकते हैं तो उनके खिलाफ आदेश.
  6. आपोरी द्वारा पीड़ित से किसी भी तरह संपर्क करने पर रोक संबंधी आदेश.
  7. आरोपी अगर पीड़ित व्यक्ति की संपत्ति को अलग करने की कोशिश करते हैं तो उन्हें रोकने संबंधी आदेश.  
  8. आरोपी द्वारा संयुक्त बैंक लॉकर या खातों को संचालित करने पर रोक और पीड़ित को ये अधिकार सौंपने संबंधी आदेश.
  9. पीड़ित के रिश्तेदारों या उस पर आश्रित किसी व्यक्ति से हिंसा किए जाने पर रोक लगाने संबंधी आदेश.

पीड़ित व्यक्ति, आरोपी या दुर्व्यवहार कर रहे व्यक्ति से तत्काल सुरक्षा की मांग कर सकते हैं. मजिस्ट्रेट अस्थायी रूप से, लेकिन एक तय समय सीमा के लिए, सुरक्षा प्रदान करेगा जब तक वह यह महसूस नहीं करता कि परिस्थितियों में बदलाव के चलते अब इस तरह के आदेश की जरूरत नहीं24.


सुरक्षित निवास को लेकर पीड़ित व्यक्ति अदालत से किस तरह के आदेश पा सकता है?


अदालत के आदेश आम तौर पर आरोपी को नीचे दिए गए काम करने से रोक सकते हैं: 

  1. साझा घर से पीड़ित को बेदखल करना या बाहर निकालना.  
  2. साझा घर के उस हिस्से में आवाजाही करना जिसमें पीड़ित रहते हैं. 
  3. साझा घर को अलग करना/उसे बेचना या पीड़ित के उसमें आने-जाने पर रोक लगाना.
  4. साझा घर पर उनके हक को खत्म करना
  5. पीड़ित व्यक्ति को उसके व्यक्तिगत सामान तक पहुंचने का अधिकार देने संबंधी आदेश.
  6. आरोपी को आदेश जारी करना कि वो या तो साझा घर से खुद को दूर कर लें या वैकल्पिक निवास उपलब्ध करवाए या फिर उसके लिए किराए का भुगतान करें.  


पीड़ित किस तरह की आर्थिक या वित्तीय राहत का दावा कर सकते हैं?


आर्थित राहत का दावा वास्तविक खर्च या एकमुश्त भुगतान के रूप में किया जा सकता है. इसके अलावा, आर्थित राहत पहले हुए नुकसान की भरपाई और भविष्य के ख़र्चों को पूरा करने के लिए दी सकती है. पीड़ित को हुई मानसिक पीड़ा के लिए भी मुआवज़े के रूप में आर्थिक राहत दी जा सकती है. आर्थिक राहत को निम्न रूप में समझा जा सकता है:

  1. कमाई का नुकसान
  2. मेडिकल या इलाज संबंधी खर्च
  3. पीड़ित व्यक्ति से संपत्ति छीनने  या उसे नष्ट करने को लेकर हुआ नुकसान 
  4. कोई अन्य नुकसान या शारीरिक या मानसिक चोट 
  5. भोजन, कपड़े, दवाओं और अन्य बुनियादी ज़रूरतों से जुड़े ख़र्चों के भुगतान के लिए भी निर्देश दिए जा सकते हैं, जैसे- स्कूल की फ़ीस और उससे जुड़े खर्च; घरेलू खर्च आदि. इन ख़र्चों का हिसाब महीने के आधार पर किया जाता है.  


मजिस्ट्रेट के सामने अपील दाखिल करने के समय पीड़ित को क्या खुलासे करने होंगे?


पीड़ित को अपने और आरोपियों के बीच भारतीय दंड संहिता, आईपीसी, हिंदू विवाह अधिनियम,  हिंदू दत्तक भरण-पोषण अधिनियम के तहत दर्ज पहले के किसी मामले की जानकारी देनी होगी. पीड़िता को यह भी बताना होगा कि रखरखाव को लेकर क्या कोई आवेदन पहले से दायर किया गया है और क्या कोई अंतरिम रखरखाव दिया गया है.


क्या शिकायत दर्ज करने पर आरोपी या दुर्व्यवहार कर रहे व्यक्ति को तुरंत गिरफ्तार कर लिया जाएगा?


यह संभव नहीं है कि शिकायत दर्ज करने पर दुर्व्यवहार कर रहे व्यक्ति को तुरंत गिरफ्तार कर लिया जाए. घरेलू हिंसा से जुड़े क़ानूनों के गलत इस्तेमाल को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने घरेलू हिंसा के मामलों में गिरफ्तारी को लेकर दिशा निर्देश जारी किए हैं. उन मामलों में तुरंत गिरफ्तारी की जा सकती है जहां पीड़ित को गंभीर चोटें आई हों.


वित्तीय या आर्थिक दुर्व्यवहार क्या है?


वित्तीय या आर्थिक दुर्व्यवहार तब होता है जब आरोपी पीड़ित व्यक्ति की पैसे से जुड़ी स्वतंत्रता को सीमित करता है. यह तब हो सकता है जब25

  1.   दुर्व्यवहार करने वाला व्यक्ति आपके पैसे को नियंत्रित करता है.  
  2.   दुर्व्यवहार करने वाला व्यक्ति आपको पैसे नहीं देता या आपकी ज़रूरत के मुताबिक पैसा नहीं देता.
  3.   दुर्व्यवहार करने वाला व्यक्ति आपको नौकरी करने से रोकता है. 
  4.   दुर्व्यवहार करने वाले व्यक्ति ने आपकी शादी से पहले या उसके दौरान मिले सोने, गहनों या दूसरी महंगी चीज़ों को आपसे छीन लिया है.


क्या मुझे अपने हक में अदालत से तत्काल कोई आदेश मिल सकता है?


हां,  आप अपने साथ दुर्व्यवहार कर रहे लोगों के खिलाफ तुरंत सुरक्षा की मांग कर सकती हैं. मजिस्ट्रेट से आपको अस्थायी लेकिन तय समय सीमा के लिए सुरक्षा मिल सकती है26 यानी जब तक वो यह महसूस नहीं करते कि हालात में बदलाव के चलते अब इस तरह के आदेश की ज़रूरत नहीं है27 स्थिति के आधार पर मजिस्ट्रेट, आपको आश्रय दिलवाने, कस्टडी और आर्थिक राहत से जुड़े आदेश भी पारित कर सकता है. वो आपकी सुरक्षा के लिए रीस्ट्रेनिंग ऑर्डर यानी निरोधक आदेश भी पारित कर सकता है.


मुझे मेरे साझा घर से बाहर निकाला जा रहा है. मैं क्या कर सकती हूँ?


अगर आप अपने साथी या अपने साथ दुर्व्यवहार करने वाले लोगों के साथ एक ही घर में सुरक्षित महसूस नहीं कर रही हैं,  तो आप अदालत से रेज़िडेंस ऑर्डर यानी निवास आदेश की अपील कर सकती हैं28. निवास आदेश आपकी इस तरह मदद कर सकता है:

  1. आरोपियों द्वारा आपको घर से निकाले जाने पर रोक लगा सकता है
  2. आरोपियों को घर छोड़ने और अगले आदेश तक घर में कदम न रखने का आदेश दे सकता है.
  3. आरोपियों को आदेश दे सकता है कि वो आपके लिए किसी दूसरी रहने की जगह का इंतज़ाम करें

साझे घर पर आपका या आपके साथ दुर्व्यवहार करने वालों का अधिकार न होने के बावजूद  अदालत ऊपर दिए गए मामलों में आदेश दे सकती है.


मैं अपने साथी के साथ रहती हूँ और मुझे डर है कि मैं शारीरिक और यौन शोषण का शिकार हो रही हूं. क्या मैं घरेलू हिंसा की शिकायत दर्ज कर सकती हूं?


यदि आप एक ही छत के नीचे अपने साथी के साथ रह रही हैं, तो यह एक साझा घर है. भले ही आप और आपका साथी शादीशुदा न हों, लेकिन यह एक घरेलू रिश्ता माना जाता है. आपके पास अपने प्रेमी/साथी के खिलाफ घरेलू हिंसा की शिकायत दर्ज करने का कानूनी अधिकार है. हालाँकि, अदालत को इस बात से संतुष्ट होना चाहिए कि आपका संबंध "विवाह की प्रकृति" में है क्योंकि भारत में लिव-इन संबंध पूरी तरह से कानून के दायरे में नहीं आते. इसकी शर्तें निम्न हैं29:   

  1. रिश्ते की अवधि;
  2. सार्वजनिक जगहों पर साथ आना-जाना;
  3. घरेलू इंतज़ाम;
  4. उम्र और वैवाहिक स्थिति;
  5. सेक्स संबंध;
  6. आर्थिक रूप से और दूसरे संसाधनों के ज़रिए एक साथ जुड़ा होना;
  7. पार्टियाँ आयोजित करना, और;
  8. बच्चे


क्या उस क्षेत्र में शिकायत दर्ज की जा सकती है जहां पीड़ित नहीं रहती है?


हां, घटना की जगह की परवाह किए बिना किसी भी इलाके में शिकायत दर्ज की जा सकती है. इसे ज़ीरो एफ़आईआर कहा जाता है. ज़ीरो एफ़आईआर का मतलब है कि मामला पुलिस थाने के अधिकार क्षेत्र में न आने के बावजूद सीरियल नंबर "शून्य यानी ज़ीरो" के साथ एक एफ़आईआर दर्ज की जा सकती है. बाद में इसे संबंधित इलाके के पुलिस स्टेशन में स्थानांतरित किया जा सकता है यानी जहां घटना हुई या पीड़िता रहती है. जांच केवल अधिकार क्षेत्र की पुलिस ही करेगी. ऐसा किया गया है ताकि एफ़आईआर दर्ज करने में लगने वाले समय को कम किया जा सके.

उदाहरण के लिए: यदि आपके पति आपको जयपुर में अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर करते हैं और आप अब दिल्ली में अपने माता-पिता के साथ हैं, तो आप दिल्ली में एफ़आईआर दर्ज कर सकती हैं. हालांकि, जांच जयपुर में पुलिस द्वारा की जाएगी.


क्या घरेलू हिंसा की शिकायत ऑनलाइन दर्ज की जा सकती?


राष्ट्रीय महिला आयोग के ऑनलाइन पोर्टल पर पीड़ित घरेलू हिंसा की शिकायत दर्ज कर सकते हैं.


वकील की सेवाएं कैसे ली सकती हैं?


सरकारी वकील या निजी वकील घरेलू हिंसा के मामलों को उठा सकते हैं30. वो मजिस्ट्रेट के सामने अपील करने में मदद कर सकते हैं और प्रोटेक्शन ऑर्डर व आर्थिक राहत पाने में आपकी मदद कर सकते हैं.


भारत में घरेलू हिंसा पर कौन से कानून लागू होते हैं?


घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 इस मामले में लागू एक कानून है, जो खासतौर पर घरेलू हिंसा को संबोधित करता है. इसके अलावा भारतीय दंण्ड संहिता, 1860 की धारा 498-ए, जो क्रूरता को संबोधित करती है, घरेलू हिंसा के मामलों से जुड़ी है.


मुझे कैसे पता चलेगा कि मैं घरेलू हिंसा का सामना कर रही हूं?


अगर आपको लगता है कि आपके जीवन साथी या परिवार के वो सदस्य जिनके साथ आप एक ही घर में रहती हैं आपके साथ हिंसक, डराने वाला या अपमान जनक व्यवहार कर रहे हैं, तो ये घरेलू हिंसा के संकेत हैं.

घरेलू हिंसा की घटना पीड़ित को भला-बुरा कहने या उसकी आलोचना करने के साथ शुरू हो सकती है यानी आपको मौखिक दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ सकता है. पीड़ित के साथ शारीरिक हिंसा भी की जा सकती है जिसमें- खींचतान, हाथापाई, धक्का देने, थप्पड़ मारने जैसी हरकतें शामिल हैं. आपका जीवन साथी आपको और आपके काम को नियंत्रित करने की कोशिश कर सकता है. वो आपको धमकाने, शारीरिक रूप से नुकसान पहुंचाने, या आपको आर्थिक रूप से नियंत्रित कर सकते हैं. ऐसे में आप भावनात्मक रूप से बिखरा हुआ महसूस कर सकती हैं. आप आत्मविश्वास की कमी, आत्मसम्मान की कमी या खुद को दोषी महसूस कर सकती हैं.

अक्सर घटना के बाद आरोपी "गलती" के लिए माफी माँगता है और फिर उसी तरह का व्यवहार करना जारी रखता है.


यदि मुझे घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ रहा है, तो मुझे क्या करना चाहिए?


घरेलू हिंसा के शिकार लोग अक्सर बोलने से डरते हैं. उन्हें डर होता कि मामले को सामने लाने से स्थिति और बिगड़ सकती है, यहां तक कि उनके बच्चों को भी नुकसान पहुंच सकता है. नीचे दिए कुछ तरीकों से आप मदद पा सकती हैं:

  • आपके इलाके में मौजूद गैर-सरकारी संगठन यानी एनजीओ, आश्रय या सलाह देने का काम कर सकते हैं. अगर आप मामले को रिपोर्ट करने का फैसला लेती हैं एनजीओ आपको सभी कानूनी विकल्पों के बारे में जानकारी देकर आपका मार्गदर्शन कर सकती हैं. 
  • घरेलू हिंसा की घटना की रिपोर्ट पुलिस स्टेशन या राष्ट्रीय महिला आयोग की वेबसाइट पर करें. यदि आप पुलिस स्टेशन नहीं जा सकतीं, तो 100 नंबर या आयोग की हेल्पलाइन डायल करें. भारत सरकार द्वारा लगाए गए लॉकडाउन के दौरान, महिला आयोग ने रिपोर्ट करने के लिए एक व्हाट्सएप नंबर भी जारी किया है. इन नंबरों की जानकारी के लिए हमारे हेल्पलाइन सेक्शन को देखें.
  • अपने क्षेत्र में प्रोटेक्शन ऑफ़िसर से संपर्क करें जो आपको कानूनी प्रक्रिया, मेडिकल सहायता और आश्रय आदि के बारे में बताएँगे.

संदर्भ-निर्देश


19. दिल्ली में बलात्कार के मुक़द्दमों की कार्यवा ही पर हुआ एक विस्तृत अध्ययन (जनवरी २०१४ - मार्च २०१५) बलात्कार मामलों में सुनवा ई को लेकर, पीड ़ितों के अनुकूल कार्रवाई और प्रक्रियाएँ
20. सेक्शन ३, प्रोटेक्शन ऑफ़ वीमेन फ्रॉम डोमेस्टिक वा यलेंस एक्ट, २००५
21 न्याय, भारतीय कानून की व्याख्या, फाइलिंग ए कंप्लेंट अगेंस्ट डोमेस्टिक वायलेंस, https://nyaaya.org/family/filing-a-complaint-against-domestic-violence/
22. फाइलिंग ए कंप्लेंट अगेंस्ट डोमेस्टिक वायलेंस, https://nyaaya.org/family/filing-a-complaint-against-domestic-violence/कं प्लेंट एं ड इन्वेस्टीगेशन सेल, http://ncw.nic.in/ncw-cells/complaint-investigation-cell
23. मोबिलीज़िंग फॉर एक्शन ऑन वायलेंस अगेंस्ट वीमेन: ए हैंडबुक फॉर आशा , https://nhm.gov.in/images/pdf/communitisation/asha/ASHA_Handbook-Mobilizing_for_Action_on_Violence_against_Women_English.pdf
24. न्याय, भारतीय कानून की व्याख्या इमीडियेट प्रोटेक्शन फॉर डोमेस्टिक वा यलेंस, https://nyaaya.org/family/immediate-protection-for-domestic-violence/, सेक्शन २५, प्रिवेंशन ऑफ़ वी मेन फ्रॉम डोमेस्टिक वा यलेंस एक्ट, २००५
25. स्टेइंग इन द हाउस/रेजिडेंस आर्डर फॉर डोमेस्टिक वा यलेंस, https://nyaaya.org/family/staying-in-the-house-residence-order-for-domestic-violence/
26. सेक्शन २५, प्रिवेंशन ऑफ़ वी मेन फ्रॉम डोमेस्टिक वा यलेंस एक्ट, २००५
27. इमीडियेट प्रोटेक्शन फॉर डोमेस्टिक वा यलेंस, https://nyaaya.org/family/immediate-protection-for-domestic-violence/
28. स्टेइंग इन द हाउस/रेजिडेंस आर्डर फॉर डोमेस्टिक वा यलेंस, https://nyaaya.org/family/staying-in-the-house-residence-order-for-domestic-violence/
29. इंद्रा सरमा व. व.क.व. सरमा, MANU/SC/१२३०/२०१३
30. सेक्शन २८ ऑफ़ द प्रोटेक्शन ऑफ़ वी मेन फ्रॉम डोमेस्टिक वा यलेंस एक्ट, २००५

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